महाकुंभ का इतिहास और 2025 का आयोजन
महाकुंभ मेला भारत का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम माना जाता है। यह हर 12 वर्षों में चार प्रमुख पवित्र स्थलों—प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—पर आयोजित किया जाता है।
महाकुंभ का इतिहास
महाकुंभ का वर्णन पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसका संबंध समुद्र मंथन की कथा से जोड़ा जाता है, जिसमें अमृत कलश (कुंभ) को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र हो गए।
पहला महाकुंभ मेला 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा संगठित किया गया माना जाता है। यह आयोजन हिंदू धर्म के अनुयायियों को एकजुट करने का प्रयास था। इसके बाद से यह परंपरा हर 12 वर्षों में जारी है।
2025 का महाकुंभ मेला
2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित हो रहा है। यह मेला 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। मकर संक्रांति के साथ मेले का आरंभ होगा, और इसमें शाही स्नान की प्रमुख तिथियां निर्धारित की गई हैं।
शाही स्नान की प्रमुख तिथियां (2025):
- 14 जनवरी – मकर संक्रांति
- 17 जनवरी – पौष पूर्णिमा
- 29 जनवरी – मौनी अमावस्या
- 14 फरवरी – बसंत पंचमी
- 19 फरवरी – माघ पूर्णिमा
महाकुंभ मेले की विशेषताएं
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संगम में स्नान:
गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान करना आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है। -
नागा साधु और अखाड़ों की शोभायात्रा:
साधु-संतों का प्रदर्शन, विशेषकर नागा साधुओं की शोभायात्रा, मेले का प्रमुख आकर्षण है। -
धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन:
प्रवचन, भजन-कीर्तन, और योग के कार्यक्रम श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं।
आयोजन की व्यवस्था
2025 के महाकुंभ मेले में प्रशासन ने लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना को ध्यान में रखते हुए व्यापक इंतजाम किए हैं। इसमें 50,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी और 20,000 कर्मचारी तैनात रहेंगे। साथ ही, स्वच्छता और यातायात प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।
महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रतीक है, जो दुनिया भर से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।