महाकुंभ मेला का संस्कृतिक महत्व।

 

महाकुंभ मेला का संस्कृतिक महत्व।





महाकुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा सामूहिक सभा भी माना जाता है। यह मेला हर 12 साल में एक बार चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित किया जाता है: 


1. प्रयागराज (इलाहाबाद)  

2. हरिद्वार  

3. उज्जैन  

4. नासिक  


महाकुंभ का महत्व:

महाकुंभ का धार्मिक महत्व समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें अमृत कुंभ की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरी थीं। ऐसा माना जाता है कि इस मेले में पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 



समय और आयोजन:

महाकुंभ का आयोजन विशेष खगोलीय घटनाओं के आधार पर होता है। सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की विशेष स्थितियों के अनुसार इसका समय निर्धारित किया जाता है।  


 प्रमुख आकर्षण: 

- साधु-संतों और अखाड़ों का जुलूस  

- गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान  

- धार्मिक प्रवचन और यज्ञ  

- सांस्कृतिक कार्यक्रम  




महाकुंभ का ऐतिहासिक महत्व:

महाकुंभ का पहला लिखित प्रमाण 7वीं शताब्दी में हर्षवर्धन के काल का मिलता है। इसके बाद से यह आयोजन धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बन गया।  



यह आयोजन भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और धार्मिकता का जीता-जागता उदाहरण है।

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